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पंचायत सचिव काम के बोझ में दबे, मानसिक तनाव ने भी घेरा। बिझड़ में सचिवों के 10 पद खाली, चौकीदार भी कम!

पब्लिक फोकस बिझड़ी बड़सर!

पंचायती राज विभाग में सचिवों पर काम का बोझ इतना बढ़ता जा रहा है कि कामकाज को सही तरह से निपटाना उनके बस से बाहर होता जा रहा है। कुछ लोग तो मानसिक तनाव का शिकार होकर रह गए हैं। परिणाम स्वरूप सरकार की योजनाओं का लाभ लोगों तक पहुंचाना संभव नहीं हो पा रहा है। यह बात बिझड़ी ब्लॉक प्रधान एसोसिएशन द्वारा जारी संयुक्त ब्यान में कही।

जारी बयान में कहा गया कि अकेले बिझड़ी ब्लॉक में 10 पंचायत में सचिव के पदों पर कर्मी नहीं हैं। इसके अलावा 2 सचिव मेडिकल लीव पर हैं तथा एक सचिव को एसईबीपीओ का चार्ज दिया गयाहै। ऐसे में सचिवों को लगभग 14 पंचायत का अतिरिक्त कार्यभार मिला हुआ है। पंचायत में सचिवों की मदद व अन्य काम काज निपटाने के लिए पंचायत चौकीदार होते थे परंतु अब सरकार द्वारा नई चौकीदारों की भर्ती किए जाने पर रोक लगा दी है। ऐसे में पंचायत सचिवों को झाड़ू पोचे व साफ सफाई का अतिरिक्त कार्यभार भी देखना पड़ रहा है। मामला यदि पंचायती राज विभाग के कामकाज से ही जुड़ा हो तब भी व्यवस्था को चलाया जा सकता है। परंतु सरकार की हर योजना को पंचायत सचिवों के माध्यम से धरातल पर उतारने का जिम्मा संभाल जाता है। परंतु 2-2 पंचायत का जिम्मा संभालने के चलते अब उनपर यह जिम्मेदारी भार बनती जा रही है। कार्यालय के कामकाज , रिकॉर्ड को संसाधित व आम जनता के कामकाज को निपटाने के अलावा अब उन्हें पशुओं की गणना, विकास कार्यों की जियोटेगिंग, प्रधानमंत्री आवास योजना का सर्वे, बीपीएल परिवारों का सर्वे के अलावा अन्य ऐसी बहुत सारी जिम्मेदारियां सौंप जा रही हैं जिन्हें पूरा करना असंभव नजर आ रहा है।

तथ्यों पर नजर दौड़ाएं तो एक महीने में 5 से 6 दिन का अवकाश होता है, आवश्यक रूप से पंचायत में दो कोरम होते हैं महीने में लगभग चार दिन बैठकें विकास खंड कार्यालय विकास में प्रगति व स्वच्छता इत्यादि को लेकर में होती हैं। अब ऐसे में एक महीने में बचे 20 दिनों में इन सचिवों को पंचायत के अन्य कामकाज निपटाना होते हैं। जिन सचिवों के पास एक पंचायत का कार्यभार है वह तो किसी न किसी तरह व्यवस्था को धक्का दे रहे हैं परंतु दो पंचायत का कार्यभार संभाले सचिव मानसिक तनाव का शिकार हो रहे हैं।

अधिकांश पंचायतों में नजर दौड़ाई जाए तो किए जाने वाले सभी सर्वे आदि अधूरे हैं या फिर खाना पूर्ति के लिए पूरे कर दिए गए जिससे सही आंकड़े सरकार तक नहीं पहुंच पा रहे हैं।जिसका खामियाजा आम जनता को भुगतना पड़ता है।

ऐसे में पंचायती राज संस्थाओं को चलाना पंचायत प्रतिनिधियों के लिए भी चुनौती बना हुआ है। यही कारण है कि आज अधिकांश पंचायत में विकास कार्यों की राशि को खर्च नहीं किया जा पा रह है।

एसोसिएशन ने सरकार से मांग की कि पंचायतों में रिक्त पड़े सचिवों, पंचायत चौकीदारों, तकनीकी सहायकों तथा रोजगार सेवकों के पदों को भरा जाए ताकि पंचायत के विकास कार्यों को गति मिल सके और कर्मचारियों को भी तनाव का शिकार न होना पड़े।

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